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गुरुवार, 10 अक्तूबर 2013
महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन अपने दिमाग में ही शोध का विजुअल प्रयोग कर खाका तैयार कर लेते थे
अल्बर्ट आइंन्स्टीन
यह जानकर आपको बेहद ही आश्चर्य हो, लेकिन सत्य है कि महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन अपने दिमाग में ही शोध का विजुअल प्रयोग कर खाका तैयार कर लेते थे। यह उनके लेबोरेट्री प्रयोग से ज्यादा सटीक होता था।
आइंस्टीन को उनके प्रयोग के लिए नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया, लेकिन इसके साथ मिलने वाली राशि पर उनका अधिकार नहीं हो पाया। यह राशि उनके तलाक के दौरान बीवी से सेटलमेंट के दौरान देनी पड़ी।
भले ही आइंस्टीन को दुनिया सबसे महान वैज्ञानिक मानें, लेकिन वे बचपन से ही सीखने और पढ़ने में कमजोर और धीमे थे। वे यूनिवर्सिटी में दाखिले के लिए पहले एंट्रेन्स एग्जाम में फेल हो गए थे।
एक पैथोलॉजिस्ट ने आइंन्स्टीन के शव परीक्षण के दौरान उनका दिमाग चुरा लिया था। उसके बाद वह 20 सालों तक एक जार में बंद रहा।
आइंस्टीन अपनी खराब याददाश्त के लिए बदनाम थे। यह सच है कि वे अक्सर तारीखें, नाम और फोन नंबर भूल जाते थे। जर्मन वैज्ञानिक आइंस्टीन को इजरायल के राष्ट्रपति पद का प्रस्ताव दिया गया, लेकिन उन्होंने इसे विनम्रतापूर्वक मना कर दिया।
इतने बड़े वैज्ञानिक के साथ कोई विवाद न हो, ऐसा हो नहीं सकता। वे 1902 में एक अवैध संतान के पिता बने। 1879 में जन्मे आइंस्टीन की कानूनी रूप से 1909 और 1919 में दो शादियां हुई थीं। आइन्स्टीन समेत डार्विन एलन पोई और सद्दाम हुसैन जैसी हस्तियों ने अपनी पहली शादी कजिन से की थी। sabhar : bhaskar.com
रविवार, 22 सितंबर 2013
एलियंस के अस्तित्व पर हॉकिंग की मुहर
स्टीवन हॉकिंग का कहना है कि मानव को दूसरे ग्रहों के प्राणियों से सम्पर्क करने की कोशिश नहीं करनी चाहिए
इस ब्रह्मांड के दूसरे ग्रहों में प्राणी अवश्य ही हैं लेकिन लोगों को उनसे बचकर रहना चाहिए. ये चेतावनी है ब्रिटेन के जाने-माने वैज्ञानिक स्टीवन हॉकिंग की.
टेलीविज़न के डिस्कवरी चैनल पर एक सिरीज़ दिखाई जा रही है जिसमें स्टीवन हॉकिंग ने माना कि यह पूरी तरह से तार्किक है कि बौद्धिक प्राणी अन्य ग्रहों पर भी होंगे.
उन्होंने कहा कि संभव है कि वो संसाधनों की तलाश में पृथ्वी पर हमला करें और फिर आगे बढ़ जाएं.
उन्होने कहा, "अगर एलियन पृथ्वी पर आते हैं तो उसका वैसा ही परिणाम होगा जैसा कोलम्बस के अमरीका पहुंचने पर वहां के मूल निवासियों का हुआ था".
स्टीवन हॉकिंग मानते हैं कि दूसरे ग्रहों के प्राणियों से संपर्क करने की कोशिश करने से बेहतर ये होगा कि हम उससे बचें.
इसकी व्याख्या करते हुए उन्होने कहा, "इसके लिए हमें अपने आपको देखने की ज़रूरत है कि बौद्धिक जीव का विकास उस शक्ल में हो सकता है जिससे हम न मिलना चाहें".
अतीत में मानव ने अंतरिक्ष में ऐसे खोजी यान भेजे हैं जिनमें मानव के नक्काशीदार चित्र और पृथ्वी की स्थिति बताने वाले नक्शे रखे हुए थे.
अगर एलियन पृथ्वी पर आते हैं तो उसका वैसा ही परिणाम होगा जैसा कोलम्बस के अमरीका पहुंचने पर वहां के मूल निवासियों का हुआ था.
स्टीवन हॉकिंग
इसके अलावा अंतरिक्ष में रेडियो संकेत भी भेजे गए हैं जिससे वो किसी एलियन सभ्यता तक पहुंच सकें.
स्टीवन हॉकिंग ने कहा कि इस ब्रह्मांड में अनगिनत आकाशगंगाएं हैं इसलिए यह सोचना कि उनमें कहीं न कहीं जीवन होगा बिल्कुल तार्किक है.
उन्होंने कहा, "सबसे बड़ी चुनौती यह पता करना है कि वो देखने में कैसे होंगे".
डिस्कवरी चैनल पर दिखाई जाने वाली इस सिरीज़ में कई तरह के जीवों की कल्पना की गई है जिनमें दो पैरों पर चलने वाले शाकाहारी जीव से लेकर शिकार करने वाले छिपकलीनुमा जीव शामिल हैं.
लेकिन स्टीवन हॉकिंग का मानना है कि इस ब्रह्मांड में जीवन साधारण सूक्ष्म जीवाणुओं वाला ही होगा.
हमारे सौर मंडल पर तैयार की गई बीबीसी की एक सिरीज़ में मैनचैस्टर विश्वविद्यालय में भौतिकी के प्रोफ़ेसर ब्रायन कॉक्स ने कहा था कि हमारे सौर मंडल में भी जीवन हो सकता है.
उनका कहना था कि बृहस्पति ग्रह के एक चंद्रमा यूरोपा में जो बर्फ़ की परतें जमा हैं उनके नीचे सूक्ष्म जीव हो सकते हैं. sabhar : bbc.co.uk
दुनिया भगवान के हाथों नहीं बनी'
अपनी पिछली किताब में हॉकिंग ने ईश्वर के अस्तित्व की संभावना से इनकार नहीं किया था
दुनिया के जाने-माने वैज्ञानिक स्टीफ़न हॉकिंग ने कहा है कि ईश्वर ने ब्रह्मांड की रचना नहीं की.
अपनी नई किताब दी ग्रैंड डिज़ाइन में उन्होंने लिखा है कि ब्रह्मांड की रचना अपने आप हुई है.
इससे पहले वे कहते रहे थे कि सृष्टि के रचयिता की अवधारणा विज्ञान के सिद्धांतों के विपरीत नहीं है लेकिन अब उनका कहना है कि जिस बड़े धमाके यानी बिग बैंग के बाद धरती और अन्य ग्रहों का जन्म हुआ वह वैज्ञानिक दृष्टि से अवश्यंभावी था.
स्टीफ़न हॉकिंग ब्रह्मांड की रचना को एक स्वतः स्फूर्त घटना मानते हैं.
उनकी नई किताब दी ग्रैंड डिज़ाइन प्रसिद्ध वैज्ञानिक आइजैक न्यूटन की इस धारणा को चुनौती देती है कि इस सृष्टि का अवश्य ही कोई रचियता होगा क्योंकि इतनी जटिल रचना अपने आप पैदा नहीं हो सकती.
हॉकिंग ने 1992 में हुई एक खोज को अपने तर्क का आधार बनाया है जिसमें पाया गया था कि हमारा सौरमंडल अनूठा नहीं है बल्कि ऐसे कई सूरज हैं जिनके चारों ओर ग्रह चक्कर काटते हैं, जिस तरह हमारी पृथ्वी सूर्य का चक्कर लगाती है.
हॉकिंग का कहना है, "अगर हमारे सौर मंडल जैसे दूसरे सौर मंडल मौजूद हैं तो यह तर्क गले नहीं उतरता कि ईश्वर ने मनुष्य के रहने के लिए पृथ्वी और उसके सौर मंडल की रचना की होगी".
अगर हमारे सौर मंडल जैसे दूसरे सौर मंडल मौजूद हैं तो यह तर्क गले नहीं उतरता कि ईश्वर ने मनुष्य के रहने के लिए पृथ्वी और उसके सौर मंडल की रचना की होगी
स्टीफ़न हॉकिंग
हॉकिंग ने ईश्वर के अस्तित्व की संभावना को स्पष्ट रूप से नकारा नहीं है लेकिन वे यही कह रहे हैं कि ईश्वर के जगत निर्माता होने के तर्क विज्ञान की कसौटी पर काफ़ी कमज़ोर हैं.
स्टीफ़न हॉकिंग का कहना है कि ब्रह्मांड में गुरुत्वाकर्षण जैसी शक्ति है इसलिए वह नई रचनाएँ कर सकता है उसके लिए उसे ईश्वर जैसी किसी शक्ति की सहायता की आवश्यकता नहीं है.
ब्रितानी वैज्ञानिक स्टीफन हॉकिंग ने यह किताब प्रसिद्ध अमरीकी वैज्ञानिक लियोनार्ड मल्डीनोव के साथ मिलकर लिखी है और किताब 9 सितंबर को बाज़ार में आ रही है, इस किताब के कुछ अंश अमरीकी समाचारपत्र न्यूयॉर्क टाइम्स में छप चुके हैं.
इससे पहले स्टीफ़न हॉकिंग ने ए ब्रीफ़ हिस्ट्री ऑफ़ टाइम नाम की किताब लिखी थी जिसकी लाखों प्रतियाँ दुनिया भर में बिकी थीं, इस किताब में उन्होंने सृष्टि के रचयिता के रूप में ईश्वर के अस्तित्व की संभावना से इनकार नहीं किया था.
हॉकिंग का कहना है कि उनके पास कोई पक्का सिद्धांत नहीं है, अगर ईश्वर के बारे में कोई पक्का सिद्धांत बन सके तो वह विज्ञान की सबसे बड़ी कामयाबी होगी, तब हमारे पास ईश्वर के दिमाग़ को समझने का बच जाएगा. sabhar : bbc.co.uk
हॉकिंग के दिमाग को भाषा में बदलने की कोशिश
स्टीफ़न हॉकिंग को मोटर न्यूरॉन (एमएनडी) नाम की बीमारी है
एक अमरीकी वैज्ञानिक बहुत जल्द ही यूनिवर्सिटी ऑफ़ कैम्ब्रिज में गणित और सैद्धांतिक भौतिकी के प्रोफ़ेसर रहे स्टीफ़न हॉकिंग के दिमाग को भाषा में बदलने की कोशिश का नुस्खा बताने वाले हैं.
प्रोफ़ेसर फिलिप लोव का कहना है कि इस तकनीक के ज़रिये स्टीफ़न हॉकिंग के मस्तिष्क में उत्पन्न होने वाली तरंगों को भाषा में बदला जा सकेगा.
पिछले कुछ वर्षों से स्टीफ़न हॉकिंग अपनी व्हीलचेयर पर बैठे हुए एक विशेष कंप्यूटर प्रोग्राम के जरिए अपनी बात कह पाते हैं जिसे पढने और समझने के लिए उस कंप्यूटर स्क्रीन का सहारा लिया जाता है.उनका कहना है कि स्टीफ़न हॉकिंग इसके ज़रिए अपनी भाषा को अपने मस्तिष्क में 'लिख' सकेंगे और यह उस तरीके से भिन्न होगा जिससे वह अभी तक अपनी बात दूसरे तक पहुंचा पाते हैं. isabhar : bbc.co.uk
यूनिवर्सिटी ऑफ़ कैम्ब्रिज में गणित और सैद्धांतिक भौतिकी के प्रोफ़ेसर रहे स्टीफ़न हॉकिंग की गिनती आइंस्टाइन के बाद सबसे बढ़िया भौतिकशास्त्रियों में होती रही है.
जीवन
जब वे 20-22 साल के थे तब पता चला था कि स्टीफ़न हॉकिंग को मोटर न्यूरॉन (एमएनडी) नाम की बीमारी है और वे कुछ महीने ही ज़िंदा रह पाएँगे. इसमें शरीर की नसों पर लगातार हमला होता है.
इसी बीमारी का एक रूप होता है एएलएस, जिससे प्रोफ़ेसर हॉकिंग भी ग्रसित हैं. इस बीमारी का पता चलने के बाद केवल पाँच फ़ीसदी ही लोग ऐसे होते हैं जो एक दशक से ज़्यादा ज़िंदा रह पाते है.
बीमारी के शुरुआती दिनों में तो वे ख़ुद खाना खा सकते थे, बिस्तर से भी स्वयं उठ-बैठ सकते थे.
लेकिन समय के साथ उनकी हालत बिगड़ने लगी और ये स्पष्ट हो गया कि उन्हें व्हीलचेयर में ही जीवन बिताना पड़ेगा.
उनकी विंडपाइप में गर्दन के ज़रिए ट्यूब डाली गई ताकि उन्हें साँस लेने में दिक्कत न हो. ये उपचार सफल रहा लेकिन इस वजह से उनकी आवाज़ हमेशा के लिए चली गई.
लेकिन इस सब से जूझते हुए भी प्रोफ़ेसर हॉकिंग ने अपनी पढाई और शोध जारी रखी है.
ब्लैक होल और बिग बैंग थ्योरी को समझने में उन्होंने अहम योगदान दिया है. उनके पास 12 मानद डिग्रियाँ हैं और उन्हें अमरीका का सबसे उच्च नागरिक सम्मान दिया गया है. sabhar :http://www.bbc.co.uk
मौत को भी मात देने वाले हॉकिंग
एक व्यक्ति जिसकी स्वास्थ्य समस्याओं को देखते हुए कहा जाता था कि वो शायद ही अधेड़ उम्र तक पहुँच पाए...वो शख़्स न सिर्फ़ आज अपना 70वां जन्मदिन मना रहा है बल्कि अपनी वैज्ञानिक उपलब्धियों और दृढ़ शक्ति के बूते पर आज पूरी दुनिया उन्हें सलाम करती है.
इस हस्ती का नाम है प्रोफ़ेसर स्टीफ़न हॉकिंग जो दुनिया के सबसे मशहूर वैज्ञानिकों में से एक हैं. उनका जन्म इंग्लैंड में आठ जनवरी 1942 को हुआ था.
प्रोफ़ेसर स्टीफ़न हॉकिंग को चिकित्सा की दृष्टि से पहेली माना जाता है. जब वे कोई 20-22 साल के थे तो पता चला कि स्टीफ़न हॉकिंग को मोटर न्यूरॉन (एमएनडी) नाम की बीमारी है और वे कुछ महीने ही ज़िंदा रह पाएँगे. इसमें शरीर की नसों पर लगातार हमला होता है.यूनिवर्सिटी ऑफ़ केम्ब्रिज में गणित और सैद्धांतिक भौतिकी के प्रेफ़ेसर रहे स्टीफ़न हॉकिंग की गिनती आईंस्टीन के बाद सबसे बढ़िया भौतकशास्त्रियों में होती है.
इसी बीमारी का एक रूप होता है एएलएस जिससे प्रोफ़ेसर हॉकिंग भी ग्रसित हैं. इस बीमारी का पता चलने के बाद केवल पाँच फ़ीसदी ही लोग ऐसे होते हैं जो एक दशक से ज़्यादा ज़िंदा रह पाते है.
डॉक्टरों को पता नहीं है कि आख़िर ये बीमारी क्यों होती है. लेकिन प्रोफ़ेसर हॉकिंग ने सबको ग़लत साबित किया. उन्होंने बाद में कई प्रतिष्ठित किताबें लिखी और ब्रह्मांड पर काफ़ी गहन शोध किया.
हार न मानी
ये सब प्रोफ़ेसर हॉकिंग के लिए इतना आसान नहीं था. बीमारी के शुरुआती दिनों में तो वे ख़ुद खाना खा सकते थे, बिस्तर से भी स्वयं उठ-बैठ सकते थे.
लेकिन समय के साथ उनकी हालत बिगड़ने लगी और ये स्पष्ट हो गया कि उन्हें व्हीलचेयर में ही जीवन बिताना पड़ेगा. निमोनिया के बाद उनके फ़ेफ़डे भी कमज़ोर हो गए.
उनकी विंडपाइप में गर्दन के ज़रिए ट्यूब डाली गई ताकि उन्हें साँस लेने में दिक्कत न हो. ये उपचार सफल रहा लेकिन इस वजह से उनकी आवाज़ हमेशा के लिए ग़ुम हो गई.
उन्हें अपनी बात कहने में बड़ी दिक्कत होने लगी. कैलिफ़ॉर्निया के एक कम्प्यूटर विशेषज्ञ को जब स्टीफ़न हॉकिंग की स्थिति के बारे में पता चला तो उन्होंने एक विशेष कम्प्यूटर प्रोग्राम भेजा.
इस कम्प्यूटर प्रोग्राम की मदद से प्रोफ़ेसर हॉकिंग स्क्रीन पर मेनू से शब्द चुनते. इसे वे हाथ में रखे स्विच से नियंत्रित करते थे.
इसके अलावा एक स्पीच सिंथेसाइज़र भी जोड़ा गया.....इससे निकलने वाली ध्वनि स्टीफ़न हॉकिंग की आवाज़ बन गई.
इस बीच 26 साल से उनकी पत्नी जेन से भी प्रोफ़सर स्टीफ़न का तलाक हो गया.लेकिन तमाम मुश्किलों के बावजूद उनकी अकादमिक उपलब्धियाँ कम नहीं रहीं. ब्लैक होल और बिग बैंग थ्योरी को समझने में उन्होंने अहम योगदान दिया है. उनके पास 12 मानद डिग्रियाँ हैं और अमरीका का सबसे उच्च नागरिक सम्मान उन्हें दिया गया है.
लेकिन तीन बच्चों के दादा स्टीफ़न हॉकिंग आज भी नई चुनौतियों की तलाश में रहते हैं. sabhar :http://www.bbc.co.uk
स्टीफ़न हॉकिंग की ग़ज़ब दास्तां
विश्व प्रसिद्ध महान वैज्ञानिक और बेस्टसेलर रही किताब 'अ ब्रीफ़ हिस्ट्री ऑफ टाइम' के लेखक स्टीफ़न हॉकिंग ने शारीरिक अक्षमताओं को पीछे छोड़ते हु्ए यह साबित किया कि अगर इच्छा शक्ति हो तो व्यक्ति कुछ भी कर सकता है.
हमेशा व्हील चेयर पर रहने वाले हॉकिंग किसी भी आम इंसान से इतर दिखते हैं. कम्प्यूटर और विभिन्न उपकरणों के ज़रिए अपने शब्दों को व्यक्त कर उन्होंने भौतिकी के बहुत से सफल प्रयोग भी किए हैं.
उनका जन्म इंग्लैंड में आठ जनवरी 1942 को हुआ था. उनके जीवन के इन्हीं रहस्यों से पर्दा उठाती, इस मशहूर ब्रिटिश वैज्ञानिक के जीवन पर आधारित एक फ़िल्म जल्द ही सिनेमाघरों में रिलीज़ होने वाली है.यूनिवर्सिटी ऑफ़ केम्ब्रिज में गणित और सैद्धांतिक भौतिकी के प्रेफ़ेसर रहे स्टीफ़न हॉकिंग की गिनती आईंस्टीन के बाद सबसे बढ़े भौतकशास्त्रियों में होती है.
दुनिया के महान दैज्ञानिक हॉकिंग से बात की बीबीसी संवाददाता टिम मफ़ेट ने.
"हॉकिंग का कहना है कि मुझे सबसे ज्यादा खुशी इस बात की है कि मैंने ब्रह्माण्ड को समझने में अपनी भूमिका निभाई. इसके रहस्य लोगों के खोले और इस पर किये गये शोध में अपना योगदान दे पाया. मुझे गर्व होता है जब लोगों की भीड़ मेरे काम को जानना चाहती है."
अपने जीवन पर बन रही इस फ़िल्म के बारे में पूछने पर हॉकिंग कहते हैं ''यह फ़िल्म विज्ञान पर केंद्रित है, और शारीरिक अक्षमता से जूझ रहे लोगों को एक उम्मीद जगाती है. 21 वर्ष की उम्र में डॉक्टरों ने मुझे बता दिया था कि मुझे मोटर न्यूरोन नामक लाइलाज बीमारी है और मेरे पास जीने के लिए सिर्फ दो या तीन साल हैं. इसमें शरीर की नसों पर लगातार हमला होता है.कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में इस बीमारी से लड़ने के बारे में मैने बहुत कुछ सीखा''.
हॉकिंग का मानना है कि हमें वह सब करना चाहिए जो हम कर सकते हैं, लेकिन हमें उन चीजों के लिए पछताना नहीं चाहिए जो हमारे वश में नहीं है.
'परिवार और दोस्तों के बिना कुछ नहीं'
यह पूछने पर कि क्या अपनी शारीरिक अक्षमताओं की वजह से वह दुनिया के सबसे बेहतरीन वैज्ञानिक बन पाए, हॉकिंग कहते हैं, ''मैं यह स्वीकार करता हूँ मैं अपनी बीमारी के कारण ही सबसे उम्दा वैज्ञानिक बन पाया, मेरी अक्षमताओं की वजह से ही मुझे ब्रह्माण्ड पर किए गए मेरे शोध के बारे में सोचने का समय मिला. भौतिकी पर किए गए मेरे अध्ययन ने यह साबित कर दिखाया कि दुनिया में कोई भी विकलांग नहीं है.''
हॉकिंग को अपनी कौन सी उपलब्धि पर सबसे ज्यादा गर्व है? हॉकिंग जवाब देते हैं '' मुझे सबसे ज्यादा खुशी इस बात की है कि मैंने ब्रह्माण्ड को समझने में अपनी भूमिका निभाई. इसके रहस्य लोगों के लिए खोले और इस पर किए गए शोध में अपना योगदान दे पाया. मुझे गर्व होता है जब लोगों की भीड़ मेरे काम को जानना चाहती है.''
हॉकिंग के मुताबिक यह सब उनके परिवार और दोस्तों की मदद के बिना संभव नहीं था.
इच्छामृत्यु की वकालत ?
यह पूछने पर कि क्या वे अपने भविष्य को लेकर चिंतित हैं हॉकिंग कहते हैं, ''लगभग सभी मांसपेशियों से मेरा नियंत्रण खो चुका है और अब मैं अपने गाल की मांसपेशी के जरिए, अपने चश्मे पर लगे सेंसर को कम्प्यूटर से जोड़कर ही बातचीत करता हूँ.''
मरने के अधिकार जैसे विवादास्पद मुद्दे पर हॉकिंग बीबीसी से कहते हैं, ''मुझे लगता है कि कोई भी व्यक्ति जो किसी लाइलाज बीमारी से पीड़ित है और बहुत ज्यादा दर्द में है उसे अपने जीवन को खत्म करने का अधिकार होना चाहिए और उसकी मदद करने वाले व्यक्ति को किसी भी तरह की मुकदमेबाजी से मुक्त होना चाहिए.''
स्टीफन हॉकिंग आज भी नियमित रूप से पढ़ाने के लिए विश्वविद्यालय जाते हैं, और उनका दिमाग आज भी ठीक ढंग से काम करता है.
ब्लैक होल और बिग बैंग थ्योरी को समझने में उन्होंने अहम योगदान दिया है. उनके पास 12 मानद डिग्रियाँ हैं और अमरीका का सबसे उच्च नागरिक सम्मान उन्हें दिया गया है. sabhar WWW.bbc.co.uk
शुक्रवार, 23 अगस्त 2013
रोबटों से, भला, डर किस बात का
इंटरनेट उपकरणों का आविष्कार और निर्माण करने वाली अमरीकी बहुराष्ट्रीय कम्पनी सिस्को के प्रमुख भविष्यवक्ता डेव एवन्स का कहना है कि जल्दी ही हमारी इस दुनिया में मनुष्यों से ज़्यादा रोबोट दिखाई देने लगेंगे यानी अब हर छोटी-मोटी चीज़ के लिए दुकान तक आने जाने की मुसीबत भी ख़त्म हो जाएगी। जब जिस चीज़ की ज़रूरत होगी, इंटरनेट पर जाकर उसे घर में ही प्रिन्टर पर बना लिया जाएगा।
डेव एवन्स की ख़ासियत ये है कि उनकी भविष्यवाणी कभी ग़लत नहीं होतीं। उन्होंने इंटरनेट के आविष्कार और इंटरनेट के माध्यम से व्यापार होने की भविष्यवाणियाँ की थीं, जो एकदम खरी उतरीं। एवन्स की भविष्यवाणियों का रहस्य यह है कि वे विज्ञान और तकनीक के विकास की प्रवृत्तियों का पूरी तरह से विश्लेषण करके ही अपनी बात कहते हैं।
पिछले दौर में दुनिया में स्पष्ट रूप से दिखाई दे रही एक प्रवृत्ति यह है कि त्रिआयामी प्रिन्ट तक्नोलौजी का बड़ी तेज़ी से विकास हो रहा है। इस तक्नोलौजी को एडिटिव प्रोडक्शन टेक्नीक या संयोजी उत्पादन तकनीक कहकर भी पुकारा जाता है। इस तक्नोलौजी की ख़ासियत यह है कि त्रिआयामी डिजिटल मॉडल के आधार पर कोई चीज़ बनाने के लिए विभिन्न प्रकार की सामग्री को परत दर परत चिपकाया या जोड़ा जा सकता है।
त्रिआयामी (थ्री डी) प्रिन्टर का आविष्कार तक्नोलौजी के क्षेत्र में अभी तक मानवजाति की सबसे ऊँची छलाँग है। इस तरह के प्रिन्टर आज भी काम कर रहे हैं और वे 40 विभिन्न पदार्थों का इस्तेमाल करने में सक्षम हैं। इन पदार्थों में प्लास्टिक, सोना, चाँदी, शीशा, पोलिकार्बोनेट (हल्का और मज़बूत प्लास्टिक) और ग्राफ़ीन आदि शामिल है। ये सब सामान त्रिआयामी या थ्री-डी प्रिन्टर में वैसे ही भर दिया जाता है, जैसे आजकल हम उसमें स्याही का या विभिन्न रंगों की स्याहियों का कार्ट्रेज़ लगाते हैं।
फिलहाल इस त्रिआयामी यानी थ्री-डी प्रिन्टर से सिर्फ़ साधारण चीज़ें ही बनाकर निकाली जा सकती हैं, जैसे चाँदी का चम्मच या प्लास्टिक का कोई विमान बनाकर निकाला जा सकता है। लेकिन बीस साल बाद जब यह तक्नोलौजी काफ़ी ज़्यादा विकसित हो जाएगी तो इस तरह के प्रिन्टर सामने आएँगे जो घड़ी, मोबाइल फ़ोन या कार के पुर्जे भी प्रिन्ट कर दिया करेंगे। आकार में कोई चीज़ जितनी विशाल होगी, उसका प्रिन्टर भी उतना ही बड़ा होगा, ताकि उस प्रिन्टर में आवश्यक सामग्री लोड की जा सके।
लेकिन सबसे ज़्यादा आश्चर्य की बात तो यह है कि डेव एवन्स से काफ़ी पहले ही अपने काल्पनिक उपन्यासों मे सोवियत फ़ैंटेसी लेखक भाइयों ने इस तरह के प्रिन्टर की कल्पना कर डाली थी। स्त्रूगात्स्की ब्रदर्स ने अपने उपन्यास 'लड़का और नर्क' में इसकी कल्पना कर ली थी।
अमरीकी लेखक आइज़ेक अज़ीमोव ने रोबटों की कल्पना भी कर ली थी। उन्होंने इन रोबटों के लिए यह नियम बनाया था कि ये रोबट मानव को नुक़सान नहीं पहुँचा सकेंगे और उसकी बात नहीं टाल सकेंगे। लेकिन हॉलीवुड ने मानव के ख़िलाफ़ रोबटों के विद्रोह के डर को बेहद साफ़-साफ़ पेश कर दिया। हॉलीवुड की फ़िल्मों में रोबट न सिर्फ़ विद्रोह करते हैं, बल्कि वह मानवजाति को नष्ट करके दुनिया पर कब्ज़ा भी कर लेते हैं।
अब डेव एवन्स का कहना है कि वर्ष 2025 तक विकसित देशों में रोबटों की संख्या उन देशों की जनसंख्या से ज़्यादा होगी और वर्ष 2032 में उनकी क्षमता भी मानवीय क्षमता से अधिक हो जाएगी। और वर्ष 2035 तक रोबट पूरी तरह से मानव की जगह श्रमिक का काम करने लगेंगे। लेकिन एवन्स का अनुरोध है कि इन रोबटों से डरने की ज़रूरत नहीं है क्योंकि उनमें बुद्धि नहीं है। हो सकता है कि 30 साल बाद एक सामान्य लैपटॉप का प्रोसेसर इतना शक्तिशाली हो कि उसमें 9 अरब मानव दिमागों की ताक़त हो। लेकिन यह ताक़त तो उसकी बुद्धि नहीं होगी, उसकी सोचने की क्षमता भी नहीं होगी। डेव एवन्स का कहना है कि कृत्रिम बुद्धि का निर्माण करना आसान नहीं होगा और अभी ऐसा करने में सदियों का समय लग जाएगा। sabhar : http://hindi.ruvr.ru
और पढ़ें: http://hindi.ruvr.ru/2012_11_07/robot-cisco-dave-evans/
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