गुरुवार, 11 जुलाई 2013

सोच से चल सकने वाले रोबोट्स से उम्मीदें


कॉफी का एक कप उठाने के लिए एक महिला ने मस्तिष्क की लहरों से नकली हाथ को चलाया. इस खबर के साथ इस तकनीक से लोगों की उम्मीदें बढ़ीं, लेकिन इस तकनीक को आम होने में अभी काफी वक्त लग सकता है.
अमेरिका में सोच से चल सकने वाले नकली हाथ (रोबोट) का इस्तेमाल जब हुआ तब कैथी हचिंसन के साथ कमरे में सिर्फ एक ही वैज्ञानिक योर्न फोगेल मौजूद थे. पिछले साल अमेरिका में हुए इस प्रयोग के बाद उन्होंने कहा था कि यह अब तक का सबसे अहम प्रयोग है. जर्मन एरोस्पेस सेंटर डीएलआर के वैज्ञानिक फोगेल ने डॉयचे वेले से रोबोटिक्स एक्स्पो के दौरान बातचीत में बताया, "जब तकनीक आखिरकार सफल हो गई तो वह हमारे लिए एक अहम क्षण था."
58 साल की कैथी हचिंसन सिर्फ आंखें हिला सकती थीं. उन्हें 15 साल पहले पक्षाघात हुआ था. इस कारण वह अपने हाथ नहीं हिला सकती हैं.
डीएलआर रोबोट के साथ प्रशिक्षण में साल भर लगा और इसमें ब्रेन ट्रांसप्लांट भी हुआ लेकिन फोगेल कहते हैं कि इससे एक बात साबित होती है कि सोच से रोबोट चल सकते हैं. "उन्होंने चार मौकों पर छह परीक्षण किए. और वह कप को अपने मुंह तक ले जाने में सफल हुई. दूसरी बार में कप टेबल से टकरा गया था इसलिए हमने प्रयोग वहीं रोक दिया."
योर्न फोगल रोबोट का प्रयोग दिखाते हुए
लंबी प्रक्रिया
पांच साल पहले हचिंसन के मस्तिष्क में एक चिप डाली गई जो उनके दिमाग में न्यूरॉन्स की गतिविधियों पर नजर रखती थी. फोगेल के साथी प्रोफेसर पैट्रिक फान डेर स्माग्ट उनके विकास पर नजर रखे थे. आखिरी प्रयोग से पहले हचिंसन को रोबोट के लिए ट्रेनिंग देनी पड़ी. शुरुआत में उन्हें रोबोट की हलचल का अनुसरण करने को कहा गया. इसी दौरान उनकी दिमागी गतिविधि जांची गई.
फान डेर स्माग्ट ने बताया, "बहुत जरूरी है कि मरीज के लिए प्रैक्टिस के दौरान और कानूनी रूप से परीक्षण सुरक्षित रहे. यह एक कारण था कि इस प्रयोग को इतना ज्यादा समय लगा, नहीं तो वैसे इसका विज्ञान आसान है."
हचिंसन की सफलता के बाद एक और व्यक्ति ने इस प्रोग्राम के लिए खुद को पंजीकृत किया. उनके दिमाग में भी एक साल पहले एक चिप लगाई गई. नए मरीज के साथ किए गए प्रयोग और सफल हुए.
लार्स हेमे जर्मनी के पाडेरबॉर्न शहर में रहते हैं. उनकी मांसपेशियों का विकास नहीं होने के कारण उनके हाथ काम नहीं करते. और वह खुद की देखभाल नहीं कर पाते. एक व्हीलचेयर में बैठे लार्स कैथी हचिंसन के ट्रायल का वीडियो देखते हैं. "मुझे यह बहुत रोचक लगता है. रोबोट की बांह हिलाने के लिए बहुत टाइम लगता है लेकिन सच तो यह है कि अपनी सोच से आप बोतल को हिला सकते हैं. यह शानदार है." लार्स की देखभाल करने के लिए उनके घर 24 घंटे एक व्यक्ति होता है.
बीमारी के कारण हाथ पैर नहीं हिला सकते लार्स हेमे
वह कहते हैं कि रोबोट वाले हाथ से वह कुछ काम खुद कर सकेंगे. भले ही इसकी कीमत अभी बहुत ज्यादा हो लेकिन वह इसका इस्तेमाल करना चाहते हैं. "शुरुआत में मैं इस तकनीक को इस्तेमाल करने के पक्ष में नहीं था, क्योंकि किसी को मेरे दिमाग में चिप डालनी होगी. हालांकि यह आयडिया अच्छा है. मैं ट्रांसप्लांट करवाने से हिचकूंगा नहीं."
अनिश्चित भविष्य
इस बारे में अभी शंका है कि सोच से चलने वाले रोबोट जीवन की गुणवत्ता सुधार सकते हैं. खासकर ऐसे लोगों की जो गंभीर रूप से बीमार हैं या विकलांग हैं. प्रोफेसर पैट्रिक फान डेर स्माग्ट को विश्वास है कि अधिकतर मरीजों के लिए इस तकनीक का इस्तेमाल किया जा सकेगा. लेकिन वह यह भी मानते हैं कि तकनीक अभी शुरुआती दौर में हैं.
"यह अभी आरंभिक दौर है. यह सिर्फ केस स्टडी है. मैं अभी नहीं कह सकता कि हर किसी के दिमाग में ट्रांसप्लांट किया जा सकेगा. लेकिन यह तकनीक निश्चित ही किसी स्टेज पर बाजार में आएगी, बशर्ते इसकी मांग हो."
रिपोर्टः आंद्रे लेसली/एएम
संपादनः महेश झा sabhar : dw.de

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें