मंगलवार, 9 अक्तूबर 2012

नोबेल विजेताओं की वजह से करोड़ों की बदल गई जिंदगी


नोबेल विजेताओं की वजह से करोड़ों की बदल गई जिंदगी

लंदन। जापान के शिन्या यामानाका और इंग्लैंड के जॉन गरडन को इस साल के चिकित्सा नोबेल पुरस्कार के लिए चुना गया है। उन्होंने स्टेम सेल के क्षेत्र में काम किया है। 
 
जॉन गरडन और यामानाका के शोध से नई बीमारियों का पता लगाने और उनके इलाज के नए तरीके खोजने में मदद मिली है। खासकर स्पाइनल कॉर्ड से जुड़ी बीमारी और पार्किंसंस में। 
 
दरअसल स्टेम सेल्स से ही विकसित होकर खून, त्वचा, नर्व्‍स,  हड्डी और मांसपेशी बनता है। पहले माना जाता था कि स्टेम सेल सिर्फ भ्रूण से ही निकाला जा सकता है। लेकिन यामानाका और गरडन ने इसे गलत साबित कर दिया।
 
 
स्वीडन के कैरोलिंस्का इंस्टीट्यूट में नोबेल असेंबली ने सोमवार को पुरस्कार की घोषणा की। पुरस्कार वितरण समारोह 10 दिसंबर को होगा। दोनों वैज्ञानिकों को संयुक्त रूप से 7.25 करोड़ रुपए की इनामी राशि मिलेगी। जॉन गरडन को उनके स्कूल शिक्षक ने कभी कहा था कि विज्ञान के लिए उनका जुनून 'महज समय की बर्बादी' है। 
 
गरडन के कैंब्रिज स्थित कार्यालय में एक फोटो फ्रेम लगा है जिसमें स्कूल रिपोर्ट की एक प्रति है। रिपोर्ट में लिखा है, 'गरडन वैज्ञानिक बनने का विचार रखता है... यह बहुत ही बेतुका है... यह महज समय की बर्बादी होगी...।' 

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जॉन बी गरडन
 
1933 में ब्रिटेन केडिपेन हॉल में जन्मे। आक्सफोर्ड यूनि. से 1960 में डॉक्टरेट।1972 में कैम्ब्रिज में सेल बॉयोलॉजी के प्रोफेसर। अभी देख रहे हैं गरडन इंस्टी.का काम।
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शिन्या यामानाका
 
1962 में जापान के ओसाका में जन्मे। कोबे यूनि. से 1987  में  एमडी,आथोपैडिक सर्जन की ट्रेनिंग ली।फिलहाल जापान की क्योटो यूनिवर्सिटी में हैं प्रोफेसर।
 नोबेल विजेताओं की वजह से करोड़ों की बदल गई जिंदगी


जीवन को रिवर्स गियर में लाए, और सुलझा दीं विज्ञान की उलझनें
इस साल मेडिसिन का नोबेल सम्मान उन दो वैज्ञानिकों के नाम रहा,जिन्होंने हमें सिखाया कि किस तरह हमारा शरीर बना। कैसे हमारी कोशिकाओं से फिर से नई कोशिकाएं बनाई जा सकती हैं। इस क्रांतिकारी खोज न सिर्फ हमारी पुरानी धारणाओं को तोड़ा बल्कि इलाज की नई संभावनाओं को भी जन्म दिया।

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1962 में जॉन बी गरडन ने पता लगाया
व्यस्क कोशिकाओं को विशेष परिस्थतियों में रीप्रोग्राम कर फिर से ब्लैंक कोशिकाओं में बदला जा सकता है जिससे हमारे शरीर के किसी भी भाग का पुननिर्माण हो सकता है।
 
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प्रयोग कैसे किया?
जॉन बी गरडन ने मेंढक के एग सेल के अवयस्क कोशिका नाभिक कोटेडपोल (लार्वा मेंढक) की वयस्क विशेष कोशिकाओं से बदल दिया। यह मॉडिफाई कोशिका सामान्य टेडपोल में बदल गई। इस वयस्क कोशिका के डीएनए में वह सारी काबिलियत मौजूद थी जिससे मेंढक विकसित हो सके।
 
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विज्ञान को मिली-क्लोनिंग

कोशिका ट्रांसफर की इसी तकनीक की वजह से क्लोनिंग कर पाना संभव हो सका।

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एक सवाल बाकी रह गया

गरडन की खोज के दौरान एक सवाल का जवाब बाकी रह गया कि किन जीन्स की वजह से कोशिकाएं अवयस्क से वयस्क स्थिति में आती हैं।

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2006 में मिला जवाब

जापानी वैज्ञानिक शिन्या यामानाका ने लगाई मुहर 2006 में! शिन्या यामानाकाने ऐसा ही प्रयोग चूहों पर किया। उन्होंने उन जीन्स कीखोज की जिनकी वजह सेकोशिकाएं अव्यस्क स्थितिमें रह सकती थी। नतीजा सफल रहा।

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...बदल गई पढ़ाई

पहले जॉन बी गरडन, बाद में शिन्या यामानाका की खोज से साबित हो गया कि मानव शरीरके विकास को लेकर हमारी जो धारणाएं थीं,वे गलत थी। अब तक माना जाता था कि जो कोशिकाएं एक अंग का रूप ले चुकी हैं वे फिर से पुरानी स्थिति में नहीं लौट सकती। जॉन और शिन्या की खोज की बदौलत शोध के नए क्षेत्रों का जन्म हुआ। स्कूल में पढ़ाए जा रहे शारीरिक विज्ञान का कोर्स बदल गया।
 

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इस खोज के मेरे लिए मायने क्या ?

हम सभी का विकास फर्टिलाइज्डएग सेल्स के जरिए हुआ है। जब हम भ्रूण की स्थिति में थे तब हमारी कोशिकाएं खाली स्लेट की तरह थीं, इन्हे प्‍लूरीपोटेंट स्टेम सेल्स कहा जाता है, ये कोई भी अंग विकसित करने में सक्षम है।
 
भ्रूण के रूप में जब हम थोड़ा और विकसित हुए तो हमारी कोशिकाएं मांसपेशियों, लीवर और तंत्र कोशिकाओं सहित अन्य अंगों में बदल गईं। 
पहले माना जाता था कि खाली स्लेट से पूरी किताब बनने की यह यात्रा फिर से रीवर्स गियर में नहीं जा सकती, लेकिन नई खोज ने इस धारणा को तोड़ दिया। अब हमारी ही व्यस्क कोशिकाओं से वैज्ञानिक लैब में लीवर और दिल जैसे अंग विकसित करने में जुटे हैं।


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...और मुझे कैसे मिलेगा फायदा ?
इस शोध से नई बीमारियों का पतालगाने और उनके इलाज के नए तरीके खोजने में मदद मिली है। खासकर स्पाइनल कॉर्ड से जुड़ी बीमारी और पार्किंसंस में। दरअसल स्टेम सेल्स से ही विकसित होकर खून, त्वचा, नव्र्स, हड्डी और मांसपेशी बनता है। पहले माना जाता था कि स्टेम सेल सिर्फ भ्रूण से ही निकाला जा सकता है। लेकिन यामानाका और गरडन ने इसे गलत साबित कर दिया।

नोबेल विजेताओं की वजह से करोड़ों की बदल गई जिंदगी

कैसे चुना जाता है नोबेल विजेता को?

नोबेल पुरस्कारों की घोषणा का इंतजार पूरी दुनिया को रहता है। लेकिन चयन प्रक्रिया पर सवाल उठते रहे हैं। पांच बार नामांकित होने के बाद भी महात्मा गांधी को नोबेल शांति पुरस्कार योग्य नहीं समझा गया। लेकिन सिर्फ नौ महीने के कार्यकाल के आधार पर अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा को 2009 में पुरस्कार दे दिया। इससे चयन प्रक्रिया पर सवाल उठे। अलग-अलग कमेटी चुनती है इन्हें। दरअसल नोबेल विजेता को चुनने का जिम्मा अलग-अलग कमेटियों के पास है। ये कमेटियां रॉयल स्वीडिश एकेडमी ऑफ साइंसेस द्वारा बनाई जाती हैं। इनमें चार से 5 लोग होते हैं। जबकि शांति का नोबेल देने के लिए नार्वे की संसद एक समिति बनाती है। पहले चरण में जनता से नामांकन मंगाए जाते हैं। जो नाम मिलते हैं उन पर विशेषज्ञ विचार करते हैं। उनकी खासियतों, उनकी खोज पर चर्चा होती है। नामित व्यक्ति के बारे में संबंधित देश की सरकार, पूर्व नोबल विजेताओं, प्रोफेसरों से राय मांगीजाती है। यह पूरी प्रक्रिया करीब एकसाल तक चलती है।किसी व्यक्ति की मृत्यु के उपरांतनोबल पुरस्कार के लिए उसका नामनामित करने का नियम नहीं है, किन्तु यदि नामांकन के उपरांत व्यक्ति कीमृत्यु हो जाती है, तो उसे पुरस्कार प्रदान किया जा सकता है। अब तक दो बार ऐसा हो चुका है। यदि कि सीश्रेणी में दो विजेताओं को संयुक्त रूप से पुरस्कृत किया जा रहा है, तो पुरस्कार की राशि को बराबर भाग में बांटा जा सकता है, किन्तु यदि तीन विजेता है कि प्रथम विजेता को आधी पुरस्कार राशि देने के बाद शेष राशिको अन्य दो विजेताओं में बराबर भागों में बांटा जा सकता है।sabhar : bhaskar.com

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